Thursday 13 April 2017

जिन्दा इन्सान हुँ मैं

दान की वस्तु नही ,जिन्दा इन्सान हुँ मैं

न किसी कि ख्वाहीश , न दुआ हुँ

फिर भी जिन्दा इन्सान हुँ मैं

न तोड़ो मुझे न खरोंचों मुझे ,

कि दर्द का एहसास होता है ,

न वरदान सही न आशीर्वाद सही ,

फिर भी इन्सान हुँ मैं

जीना चाहती हुँ ,

बिना नकाब के साँस लेना चाहती हुँ

गन्धारी हुँ पर फिर भी आसमाँ का एक टुकड़ा अपने लिए चाहती हुँ ,

क्या करू मै बस एक जिंदा इन्सान हुँ मैं ,इंसान होने का हक मै चाहती हुँ

मै किसी जलजले की चाहत नहीं रखती ,बस एक बदलाव चाहती हुँ ,

इन्सान हुँ बस इसांनियत से अपने इंसान होने का हक चाहती हुँ .

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