दान की वस्तु नही ,जिन्दा इन्सान हुँ मैं
न किसी कि ख्वाहीश , न दुआ हुँ
फिर भी जिन्दा इन्सान हुँ मैं
न तोड़ो मुझे न खरोंचों मुझे ,
न वरदान सही न आशीर्वाद सही ,
फिर भी इन्सान हुँ मैं
जीना चाहती हुँ ,
बिना नकाब के साँस लेना चाहती हुँ
गन्धारी हुँ पर फिर भी आसमाँ का एक टुकड़ा अपने लिए चाहती हुँ ,
क्या करू मै बस एक जिंदा इन्सान हुँ मैं ,इंसान होने का हक मै चाहती हुँ
मै किसी जलजले की चाहत नहीं रखती ,बस एक बदलाव चाहती हुँ ,
इन्सान हुँ बस इसांनियत से अपने इंसान होने का हक चाहती हुँ .